Sunday, February 16, 2014

लाल पत्थर के आंसू

ये अनुभव एक ऐसे जगह का है जिसकी एक दूसरी ही तस्वीर हमने देखी  या सुनी है  मगर जो सच मैंने देखा वो वाकई में बड़ा कष्ट कारी था कुछ वर्ष पहले मुझे अपने काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में जाना पड़ा शायद विन्ध्याचल का नाम आप सभी ने सुना होगा  एक पावन तीर्थ स्थल और उत्तर प्रदेश के लोगो ने खास कर मेरे शहर लखनऊ के लोगो ने तो एक नेता की जिद से ही सही एक जिले के उस रूप को बहुत ही करीब से देखा है जिसके अलावा यहाँ शायद और कुछ नहीं लाल पत्थर यहाँ के पठारों में सिर्फ हर ओर कुछ नज़र आता है तो वो है लाल पत्थर और लाल मिट्टी मुख्य नगर से अगर आप थोडा  आगे बडेगे तो आप को भी ये लाल पथारो के विशाल पहाड़ जरुर दिखाई देगे हर और हर तरफ बस बड़े बड़े लाल पहाड़ इन्हें देख के बस बस ऐसा ही लगता है कि  
 हर तरफ फिज़ाओ में एक अलग ही साया है 
जैसे बिना होली के किसी ने लाल गुलाल उड़ाया है
  थोड़ा और आगे बडे तो गंगा तट का एक अजीब सा नज़ारा था यहाँ की रेत ने तो मुझे न गए हुए ही समुद्र तट के दर्शन करवा दिए फिर अपने काम के सिलसिले में हम एक छोटे से गाँव जो मध्य प्रदेश से सटा हुआ था पहुचे नाम तो शायद आज याद नहीं पर जो तस्वीर मैंने देखी वो कभी नहीं भूल सकता हम शिक्षा की स्थिति को लेकर और वह के बच्चो की शिक्षा की स्थिति को जानने वह गए थे जैसे ही एक घर में मैं पंहुचा उस परिवार के सभी लोग यहाँ इक्कठा हो गए और मुझे ऐसे देखने लगे जैसे शायद कभी आम इन्सान न देखा हो पहले तो मुझे भी काफी अजीब लगा पर मेरे साथ गए वह के एक स्थानीय ने जब उन्हें बताया की मैं लखनऊ से हु तो बड़ी उम्मीद भारी निघाहे थी मेरी तरफ शायद वो मैं वर्णन न कर पाउगा  मैं,  पहले तो मेरे आसान की व्यवस्था हुई एक टूटी सी चारपाई शायद आज पता चला इसे  चारपाई क्यों कहते है उसमे सिर्फ चार पावो के अलावा कुछ भी बचा न था बड़ी ही संकुचित से नज़रो से मुझे उस पर आसीत होने को कहा गया पर मैं ये सोच की शायद इसमें जो कुछ बचा है वो मेरे असित होने ख़तम न हो जाये मैं वही पास की दरवाजे की मेड पर असित हो गया पहले तो काफी रोका मुझे पर मेरे न मानने पर अतंत मेरी ही विजय हुई उसके तुरंत बाद क्यों काफी गला सुख गया था मेरा और मेरी बोतल का मिनरल पानी भी  ख़तम हो गया था तो मैंने पानी का आग्रह कर ही डाला मैंने जैसे की पानी माँगा तो उस तरफ से एक ही उत्तर आया हम छुद्र जाती के है क्या आप अब भी पानी पियेगे मैं स्तभ सा हो गया एक पल को  उन की जाती पे नहीं बल्कि ये सोच के  की  

वह रे धरती के विधाता इन्सान तो इन्सान पानी को भी जात पात में रंग डाला 

मेरी चुप्पी को को शायद को मेरा इंकार न समझ बेठे इससे पहले मैंने फिर से पानी लाने का आग्रह करते हुए सिर्फ इतना ही बोला मुझे फर्क  नहीं पड़ता फिर एक जीत सी मुस्कान के साथ मेरे लिये पानी और साथ में गुड भी आया उसको लेकर शायद मुझे सिर्फ  सुदामा के हाथ से भोजन करते भगवन कृषण याद आये फिर आगे मैंने एक बच्चे से बात शुरू की कहा पड़ते हो क्या पड़ना पसंद है और मुझे देख कई सारे बच्चो से मेरे पास भीड़ भी  लगा ली  तभी एक बच्चा बोला मुझे पड़ना है मास्टर साहब स्कूल से भगा देते है और किताबे भी नहीं देते आप मुझे पढ़ाने आये हो मुझे  सच में पड़ना पसंद है ये सुन कर मैं स्तभ सा होगया उस मासूम की बात सुन के शायद बड़ी हिम्मत से अपने आंशुओ को रोक के मैंने उस बच्चे से कहा हां बीटा क्या पढोगे फिर क्या था उन सभी ने मुझे ऐसे घेरा जैसे गोपिओ को कान्हा मिल गए मैं मगन हो गया आपने छोटे छोटे छात्रों के स्थ और समय का पता न चला एक से दो घंटे बाद शायद कुछ अहसास हुआ तो मैंने उनके माता पिता से बात की क्या दिक्कत है क्यों नहीं पढाई तो सर्व ज्ञात शुरुवात  सरकार की नीतिओ की आलोचनाओ से हुई मगर मैं हु उन पहाड़ो की तरह जो मुझे रस्ते में मिले थे मौन सब सुनता रहा मेरी तभी एक अजीब से भोजन पड़ी जो एक बच्चा खा रहा था मैंने मैं पूछ बैठ गया क्या है ये उन्होंने आपनी भाषा में कुछ बतया फिर मैं उस स्थानीय साथी ने मुझे बताया जो शायद असहनीय न वो एक जंगली घास थी लाल मिटटी में कोई फसल न होती इस कारन से ये बरसतो में पहाड़ो पे उगने वाली घास को ही पिस कर खाते है मेरा अगला ही सवाल था और गर्मी में अब शायद उसके पास भी उत्तर न था और मै बस सोचता  ही रह गया की हम जब अपने बड़े बड़े शहरों में जरा सी गर्मी में पता  नहीं क्या क्या कर लेते है तब इन के पास शायद पेट भरने को भी  कुछ न होता होगा औए अचानक  ही अपने गालो पर मुझे गिला पन महसूस हुआ और थोड़ी ही देर के बाद मौसम ने  मेरे आसूओ को छुपाने के लिये खुद बदलो के आसूओ को बहा दिया और तेज बारिश होने लगी जैसे शायद मेरे साथ वो लाल पत्थर भी रो पड़े हो और शायद ये उन लाल पत्थर के ही आँसू थे जो बह बह कर उन लोगो के एक वक़्त के भोजन की व्यवस्था कर रहे थे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


                     

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