Saturday, February 15, 2014

सुहाना अहसास


  1. आज सुबह जब मैं जब मैं कई वर्षो याद भी नहीं कितने नियमित दिनों से काफी जल्दी सो कर जागा तो जैसे ही मेरी नज़र खिड़की से आती हुई सूरज की किरणों पर पड़ी तो मैं स्वयं ही उसकी ओर खिचता चला गया और उस द्रश्य को देख के जो अनुभुति मेरे हदय को हुई उसको यहाँ व्यक्त करने का प्रयत्न कर रहा हु ...
    आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
    बड़े दिनों के बाद आज फिर से सुबह को देखा
    सूरज को अंगड़ाते हुए आते मुस्कुराते देखा
    आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
    अहसास सुहाना था उस पल उमंग पूर्ण निर्मल
    और आपने को तो बस हमने सुबह के मेहमान सा देखा
    देख बड़े समय बाद हमें उस सुबह को स्वागत में मुस्कुराते देखा
    छड़ भी न लगे याद आने में बचपन के दिन अपने
    और हमने खुद को माँ की उंगली थामे स्कूल को जाते देखा
    आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
    आज जैसे कह रही हो सुबह हमसे बहुत बड़े हो गए हो तुम
    मैंने तो तुमको जवान होते भी न देखा
    तब हमने उसको भारी मन से फिर मुस्कुराते देखा
    हम बस आश्चर्य से देखते रहे उस सूरज को
    जिसको इतने वर्षो से हमने सिर्फ जाते हुए ही देखा
    आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
    और थोड़ी कोशिश की तो चिड़िया के घोसले से भी
    नयी सुबह का स्वागत हमने देखा
    पंख फैला के चिड़िया के बच्चो को उड़ने की कोशिश करते देखा
    दिन भर की दौड़ भाग में व्यस्त लोगो को उसके लिये उर्जा जुताते देख
    फिर अहसास हुआ हमको की जीवन की अनजान दौड़ जितने के लिये हमने क्या क्या खोया और फिर अपने को गलतियो पे आज पछताते देखा
    आज फिर से से हमने सुबह को आते देखा
    पर अगले पल शायद घडी के कांटो ने झंजोड़ा हमको
    और आजाओ वापस वर्तमान में और दौड़ो वाही न ख़तम होने वाली जीवन की दौड़ यही कहते हुए उसने हमको वापस आने को बोला
    तब हम आपने को फिर से सुबह से जुदा होते देखा
    पर वादा जरुर किया हमने आने का जल्दी वापस
    पर सुबह को जुदा हो हमसे फिर उदास देखा
    आज हमने फिर से सुबह को आते देखा .....
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