Friday, February 21, 2014

सुहाना अहसास

आज सुबह जब मैं जब मैं कई वर्षो याद भी नहीं कितने नियमित दिनों से काफी जल्दी सो कर जागा तो जैसे ही मेरी नज़र खिड़की से आती हुई सूरज की किरणों पर पड़ी तो मैं स्वयं ही उसकी ओर खिचता चला गया और उस द्रश्य को देख के जो अनुभुति मेरे हदय को हुई उसको यहाँ व्यक्त करने का प्रयत्न कर रहा हु ...
आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
बड़े दिनों के बाद आज फिर से सुबह को देखा
सूरज को अंगड़ाते हुए आते मुस्कुराते देखा
आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
अहसास सुहाना था उस पल उमंग पूर्ण निर्मल
और आपने को तो बस हमने सुबह के मेहमान सा देखा
देख बड़े समय बाद हमें उस सुबह को स्वागत में मुस्कुराते देखा
छड़ भी न लगे याद आने में बचपन के दिन अपने
और हमने खुद को माँ की उंगली थामे स्कूल को जाते देखा
आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
आज जैसे कह रही हो सुबह हमसे बहुत बड़े हो गए हो तुम
मैंने तो तुमको जवान होते भी न देखा
तब हमने उसको भारी मन से फिर मुस्कुराते देखा
हम बस आश्चर्य से देखते रहे उस सूरज को
जिसको इतने वर्षो से हमने सिर्फ जाते हुए ही देखा
आज हमने फिर से सुबह को आते देखा
और थोड़ी कोशिश की तो चिड़िया के घोसले से भी
नयी सुबह का स्वागत हमने देखा
पंख फैला के चिड़िया के बच्चो को उड़ने की कोशिश करते देखा
दिन भर की दौड़ भाग में व्यस्त लोगो को उसके लिये उर्जा जुताते देख
फिर अहसास हुआ हमको की जीवन की अनजान दौड़ जितने के लिये हमने क्या क्या खोया और फिर अपने को गलतियो पे आज पछताते देखा
आज फिर से से हमने सुबह को आते देखा
पर अगले पल शायद घडी के कांटो ने झंजोड़ा हमको
और आजाओ वापस वर्तमान में और दौड़ो वाही न ख़तम होने वाली जीवन की दौड़ यही कहते हुए उसने हमको वापस आने को बोला
तब हम आपने को फिर से सुबह से जुदा होते देखा
पर वादा जरुर किया हमने आने का जल्दी वापस
पर सुबह को जुदा हो हमसे फिर उदास देखा
आज हमने फिर से सुबह को आते देखा .

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